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जागरूकता से ही शिशु मृत्यु दर में कमी संभव

 


- शिशुओं के स्वास्थ्य सम्बंधित जागरूकता के लिए 7 नवम्बर को मनाया जाता है शिशु सुरक्षा दिवस

- गर्भावस्था के पूर्व से लेकर प्रसव के बाद तक शिशुओं का करें बेहतर देखभाल

- सही पोषण शिशुओं के लिए हैं जरुरी


पूर्णियाँ : 06 नवम्बर


देश में प्रतिवर्ष 7 नवंबर को शिशु सुरक्षा दिवस मनाया जाता है, इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि लोगों को शिशुओं की सुरक्षा से संबंधित जागरूकता फैलाना और उनके जीवन की रक्षा कर शिशुओं की उचित देखभाल होता है. लोगों को जागरूक रह कर शिशुओं के सही देखभाल से ही देश में शिशु मृत्यु दर को रोका जा सकता है. आईसीडीएस की डीपीओ शोभा सिन्हा ने बताया गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं के देखभाल के साथ ही उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा इस संबंध में कई अतिमहत्वपूर्ण योजनाओं को लागू कर देश में शिशुओं की मृत्यु दर को रोकने हेतु कार्य किए जा रहे हैं. वर्तमान में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ पहुंचे जिसके लिए लगातार जागरूकता फैलाई जा रही है।


गर्भावस्था के पूर्व से लेकर प्रसव के बाद तक शिशुओं का करें बेहतर देखभाल :

नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य माता के स्वास्थ्य से जुड़ा होता है इसलिए माँ को गर्भावस्था पूर्व से अपने स्वास्थ्य को सुदृढ़ रखना चाहिए. महिलाओं के शरीर में में खून की होती है जिसके लिए गर्भावस्था पूर्व से ही उन्हें आयरन फॉलिक एसिड की गोली का सेवन करना चाहिए. इसके साथ ही इस दौरान उन्हें आयरन युक्त आहार के सेवन को प्राथमिकता देनी चाहिए. गर्भावस्था के बाद प्रसव पूर्व जांच, टेटनस टीका भी गर्भवती महिला को लेना जरूरी होता है. प्रसव के बाद नवजात शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए जन्म के 1 घंटे के भीतर स्तनपान, 6 माह तक केवल स्तनपान, कंगारू मदर केयर, शिशुओं के निमोनिया जांच एवं टीका उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए बहुत जरुरी है.


सही पोषण शिशुओं  के लिए जरुरी :

डीपीओ शोभा सिन्हा ने बताया कि शिशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उनको बेहतर पोषण का मिलना बहुत जरुरी है. 6 माह बाद से ही शिशुओं को स्तनपान कराने के साथ आवश्यक पौष्टिक भोजन, ऊपरी आहार के रूप में देना चाहिए. आंगनबाड़ी केन्द्रों पर लोगों को शिशुओं के पूरक पौष्टिक आहार की जानकारी नियमित तौर पर सेविकाओं द्वारा दी जाती है. इसके साथ ही केंद्रों में सेविका एवं एएनएम के द्वारा अपने-अपने पोषक क्षेत्रों के नवजात शिशुओं का नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण आदि करवाया जाता है. सेविकाओं द्वारा नवजात शिशुओं को उम्र के साथ वजन एवं लम्बाई लिया जाता हैं, जिससे यह पता चलता हैं कि बच्चें का सही लालन-पालन हो रहा है. किसी तरह की कमी होने पर उन्हें सम्बंधित जांच एवं पोषणयुक्त आहार सम्बंधित जानकारी भी दी जाती है.


शिशुओं के इन लक्षणों को लेकर रहें सतर्क :


•       यदि शिशु के साँस लेने में समस्या हो

शिशु स्तनपान नहीं कर पा रहा हो 

शिशु शारीरिक तापमान बनाए रखने में असमर्थ हो (हाइपोथर्मिया)

शिशु सुस्त हो गया हो एवं शारीरिक गतिविधि में कमी हो 


प्रसव के बाद इन बातों का रखें खयाल : 


जन्म के शुरूआती 1 घन्टे में स्तनपान की शुरुआत एवं अगले 6 माह तक केवल स्तनपान 

शिशु को गर्म रखने एवं वजन में वृद्धि के लिए कंगारू मदर केयर का करें इस्तेमाल

गर्भ नाल को रखें सूखा. ऊपर से कुछ भी लगाने से करें परहेज 

6 माह के बाद स्तनपान के साथ शिशु को दें ऊपरी पौष्टिक आहार 

निमोनिया एवं डायरिया होने पर तुरंत लें चिकित्सकीय सलाह

.      सम्पूर्ण टीकाकरण कराएं


कोरोनाकाल में इन बातों का भी रखे ख्याल : 

- बच्चों को गोद में लेने से पूर्व हाथों को अच्छे से साफ करें

- बिना मास्क के बच्चों के करीब न जाए

- बच्चों को खेलने के दौरान दूसरों से शारीरिक दूरी बनाने के लिए प्रेरित करें

- खेलने के बाद उनके हाथों को धुलवाएं

- घर के बाहर से आने वाले लोगों को बच्चों के सीधे संपर्क में न आने दें

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