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*अब होगा निष्पक्ष जांच क्योंकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जिला प०चम्पारण अन्तर्गत बलथर के कांड में लिया संज्ञान !*

  


 *(अनिरुद्ध यादव प्रकरण) भीषण दंगा मामला-* 


 _ठाकुर रमेश शर्मा-_ 

 _रामनगर प०चम्पारण(बिहार)_ 

 _08-11-2022_ 



अपराधियों की अपराध पकड़ में आती है तो उसे अपराध की संज्ञा भारत के संविधान में दिया जाता है। परंतु पुलिस अपने अपराध को ड्यूटी का हिस्सा बना लेती तो है ही, मान भी लेती है। इतिहास में पहली बार नहीं हुआ है, हमेशा होती ही रहती है।वैसे दंगे या झगड़े की शुरुआत हमेशा पुलिस से ही होती है।जब मामला भीषण रूप धारण कर लेता है,तब उसे दंगे की संज्ञा दे दी जाती है। आम इंसान हमेशा

बेवकूफ बना ही रहता है।पुलिस की नजर में सबसे विद्वान तो खुद पुलिस ही होती है।भारत की सर्वोच्च अदालत ने पुलिस को वर्षों पहले ही महाविद्वान मान लिया है।जिसका परिणाम यह है कि पुलिस अनुसंधान में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। जिस वजह से एक एम०एस०सी, एल०एल०बी व्यक्ति को महज एक मैट्रिक इंटर पास,पुलिसकर्मी फर्जी एविडेंस (प्रमाण) के आधार पर चार्जशीटेड (आरोपित) करके जेल में डाल देता है।उसी आधार को आधार मानकर एसडीपीओ (ट्रू) यानी सत्य करार देते हुए सुपरविजन करते हैं।अक्सर उसी ट्रू रिपोर्ट पर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस महोदय द्वारा प्रतिवेदन 2,3,4,5,6,7 पता नहीं क्या-क्या निकाल कर जांच पूरा करते हुए आरोप पत्र समर्पित कर दिया जाता है।

उसी का एक कड़ी है 'बलथर कांड संख्या 42/2022-20-03-2022'।संपूर्ण भारत में चर्चित यह कांड भीषण दंगे का संज्ञा ले चुका है। इसका नामकरण (भीषण दंगा) के रूप में हुआ तो है, परंतु अनुसंधान पुलिस के मर्जी के माफिक वर्षों चलेगा।

ध्यान देने वाली बिंदु यह है कि इस प्रकरण में दोनों पक्ष से काउंटर कांड दर्ज हुआ तो है परंतु  अनुसंधान आम आदमी पर शीघ्र समाप्त होगा, परंतु पुलिस पर वर्षों चलेगा। कर लो जिसे जो करना है बिगाड़ लो जिसे जो भी बिगाड़ना है!

हालांकि इस मामले में विशेष अवधि के लिए आपातकालीन अनुसंधान पदाधिकारी पुलिस निरीक्षक राजीव कुमार को बेतिया से नियुक्त किया गया।जिन्हें पुनः आरक्षी अधीक्षक कार्यालय में बुला लिया गया। यही तो होता है बिहार में।

करने वाले पुलिस अधिकारी से अनुसंधान नहीं करवाया जाता है और जो नहीं करने की क्षमता रखता है उसी की प्रतिनियुक्ति होती है। जब बात बिगड़ी तो उन्हें बुला लिया,और जब शांति हो गई तो उन्हें बेतिया भेज दिया (आराम वाले कैडर में)।

राजीव कुमार का कार्य प्रणाली जगजाहिर है। बाल्मीकि नगर से लेकर रामनगर तक बेदाग रहने वाले निरीक्षक को भीषण कांड बलथर कांड निरीक्षण से दूर क्यों किया गया।ऐसे पदाधिकारी भी सूक्ष्म बिंदु पर भी अनुसंधान कर सकते हैं। ऐसे को हटाना आम जनों में है यानी जनता जनार्दन में बहुत जोरों पर हजारों सवालों को जन्म दे दे रही है।

 हालांकि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने अनिरुद्ध यादव कांड में बेतिया पुलिस अधीक्षक उपेंद्र वर्मा से संज्ञान लेते हुए 4 सप्ताह में पूरे प्रकरण में रिपोर्ट तलब किया है। सर्वविदित है कि बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग,जो बिहार के लिए तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,दिल्ली,पूरे भारत के लिए गठित है।जो ऐसे निरीह लोगों के मामलों में संज्ञान लेकर न्याय दिलाता है।

हालांकि कुछ अनसुलझे मूर्ख कहते हैं-"क्या मानवाधिकार आयोग हम पुलिस प्रशासन वालों के लिए नहीं होता है क्या?क्या हमारे अधिकार का हनन नहीं होता है ?"

 मेरे अजीज मित्रों--मैं अपने कलम के माध्यम से बताना चाहता हूं कि मैं आप पुलिस प्रशासन वालो यह तीनों तंत्र जो लोकतंत्र की रक्षा के लिए गठित है।(i)न्यायपालिका (ii)विधायिका (iii)कार्यपालिका चौथा स्तंभ (iv) पत्रकारिता, (मीडिया/सूचना तंत्र) सभी लोकतंत्र की रक्षा के लिए होती है। परंतु मीडिया को छोड़कर यह तीनों तंत्र शक्ति प्रदत्त है। जिन्हें संविधान के अनुच्छेद में इतना छेद अपने लिए निकाला जाता है जिसका फायदा उठाकर निरीह लोकतंत्र को अपनी सुविधा के अनुसार 1 दिन की सजा से लेकर फांसी तक की सजा फर्जी मामलों में दिला देते हैं। इसलिए आप ब्यूरोक्रेट नहीं कह सकते हैं कि हमारे साथ क्या मानव अधिकार हनन नहीं होता?

  इस लोकतंत्र का पांचवा तंत्र जो आम आदमी है, आपका एक बाल भी बांका नहीं कर सकता। तो आप का हनन कैसा?

 अब देखना यह है कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की टीम इस बलथर भीषण दंगा कांड के घटनास्थल पर स्वयं कब आती है? अगर आयोग बेतिया एसपी से ही जवाब तलब करेगी तो वह तो सभी कांडों में प्रतिवेदन दे चुके हैं, तो इसमें अलग से क्या दे देंगे? इसलिए आयोग के टीम को स्वयं इस सामूहिक स्थल पर जांच करना होगा।आम जनता तथा क्षेत्रीय नेता ऐसा महसूस करते हुए मांग कर रही है ?ताकि आम लोगों को न्याय मिल सके।


इस क्षेत्र के लोगों ने आयोग से प्रार्थना किया है कि बिहार मे फ़र्जी राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग वाले घूम रहे हैं।एनजीओ बनाकर अवैध वसूली करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का सदस्य भी 15 सौ रुपया लेकर बनाते फिर रहे हैं। बिहार के डीजीपी को भी इसपर संज्ञान लेना चाहिए, जो थानेदारों तक को फोन करके कंफ्यूज करके गुडविल में लेकर लोगों को ठग रहे हैं। इनके विरुद्ध शीघ्र कार्रवाई करते हुए इनका आई कार्ड तथा मुख्य सरगना का पता भी लगाना चाहिए,जो रुपयों की अवैध वसूली करवा रहे हैं। पश्चिमी चंपारण में सक्रिय हो रहे हैं ऐसे लोग बलथर कांड जैसे जगहों पर भी चले जाते हैं,भले इनसे कुछ भी नहीं हो पाता। अधिकारी जो अनाड़ी हैं इनसे डर कर इनका कार्य संपादित कर देते हैं।

 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तो दिल्ली में जो आई०एन०एस बिल्डिंग में है।(C.G.O कंपलेक्स में है।) 

सर्वप्रथम गठन के बाद 1993 में सरदार पटेल भवन में स्थापित किया गया था। परंतु इस फर्जी वाले का दफ्तर कहां है? असली का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का रिटायर्ड जस्टिस अध्यक्ष के रूप में मनोनीत होते हैं। इस अंतरराष्ट्रीय वाले फर्जी का कौन है अध्यक्ष जिन्हें शीघ्र गिरफ्तार किया जाए!

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