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*दुर्गा मां के पंडाल में श्रद्धालुओं कि भिड*

 


*रिपोर्टर सिरजेश कुमार यादव *

जनपद  कुशीनगर रामकोला थाना अंतर्गत ग्राम सभा  रामबर बुजुर्ग मैं नवरात्रि के शुभ अवसर अध्यक्षता कर रहे राजन राव, सुधाकरलाल यादव ,सचिन यादव  राजदेव यादव , मदन गोस्वामी कमेटी के अन्य सदस्यो के द्वारा मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था जिसके मुख्य अतिथि राष्ट्रीय लोक दल के प्रदेश सचिव विवेक वर्मा थे फीता काटकर कमेटी के सदस्य एवं ग्रामीणों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने की बात कही प्रत्येक व्यक्ति अपने बच्चों के भविष्य के लिए शिक्षा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की बात कही 

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। ।

*ग्राम प्रधान पतिराज चौहान ने भी फीता काँटा 

 *राष्ट्रीय दल के कार्यकर्ता *


राजेंद्र मौर्य, पंकज सिंह ,कृष्ण कुमार सिंह, राजन प्रसाद ,नितिन राय ,छोटे लाल राजभर  जिला सचिव रामप्रसाद यादव, ब्रह्मा गोस्वामी, राधे गोस्वामी, मंगरू भारती ,महेश भारती, आदि लोग उपस्थित रहे

हवन का भी कार्यक्रम किया गया सम्मिलित 9 दिन उपवास व्रत करने वाले सचिन यादव प्रिंस राव हवन करते हुए सिरजेश यादव  सुधाकरलाल यादव , राजदेव यादव ,निरग राव,गोलु गोस्वामी तथा महिलाएं भी उपस्थित रही

         *दुर्गा मां की कहानी*


कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती ही दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में विख्या हुई उन्हें ही ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जोड़कर देखा जाता है। जिन्हें दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि कहा जाता है वे सदाशिव की अर्धांगिनी है। 


माता की कथा : 

आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री सती माता को शक्ति कहा जाता है। शिव के कारण उनका नाम शक्ति हो गया। हालांकि उनका असली नाम दाक्षायनी था। यज्ञ कुंड में कुदकर आत्मदाह करने के कारण भी उन्हें सती कहा जाता है। बाद में उन्हें पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी।


पिता की ‍अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।  एक यज्ञ में जब दक्ष ने  सती और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी माता सती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। 


यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ‍क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित किए गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि अनेक माताएं हो गई। 


माता पर्वती ने ही ‍शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था। 


माता का रूप : 

मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है। 


माता की प्रार्थना : 

जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है। 


माता का तीर्थ : 

शिव का धाम कैलाश पर्वत है वहीं मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।

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