मुमताज़ अहमद ने कहा कि दुर्गा पूजा हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। दुर्गापूजा बंगाल में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है, क्योकि यह बंगालियों का प्रमुख त्यौहार होता है।
दुर्गा पूजा की शुरुआत तब हुई जब भगवन राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा से शक्ति प्राप्त करने के लिए पूजा की थी। दुर्गा पूजा का अवसर बहुत ही खुशियों से भरा होता है। खासकर विद्यार्थियों के लिए क्योंकि इस मौके पर उन्हें छुट्टियां मिलती है। इस अवसर पर घर में नए कपड़ों की खरीदारी की जाती है। कुछ बड़े स्थानों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है। बच्चों का दुर्गा पूजा के अवसर पर उत्साह दोगुना हो जाता है।
देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग पूरे नौ दिनों का उपवास रखकर पूजा करते हैं। हालाँकि कुछ लोग केवल पहले और आखरी दिन ही उपवास रखते हैं। दुर्गापूजा पूरे दस दिनों तक चलता है। लेकिन माँ दुर्गा की मूर्ति को सातवें दिन से पूजा जाता है। अंतिम के तीन दिन पूजा का उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर गली मोहल्ले में इसकी अलग ही झलक दिखती है। जगह-जगह तरह-तरह के महलनुमा विशाल पंडाल बनाये जाते हैं। दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान मेला और मीना बाजार भी लगता है।
आगे मुमताज़ अहमद ने कहा कि माँ दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है। उनके दस हाथ होते हैं और वह शेर पर विराजमान होती है। यह माना जाता है की महिषासुर नामक असुर राजा ने स्वर्ग में देवताओं पर आक्रमण कर दिया था। वह बहुत ही शक्तिशाली था और उसे कोई भी हरा नहीं सकता था। उस समय स्वर्ग के देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से बचाने के लिए ब्रम्हा, विष्णु, और शिव के द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया जिसका नाम दुर्गा रखा गया।
देवी दुर्गा को आंतरिक शक्तियां प्रदान की गयी थी, जिससे की वे महिषासुर का वध कर सके। माँ दुर्गा ने पूरे दस दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसे मार डाला। दसवें दिन को दशहरा या विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। रामायण के अनुसार भगवान राम से रावण को मारने से पहले माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए चंडी पूजा की थी। दुर्गा पूजा के दसवें दिन भगवान राम ने रावण को मारा इसलिए इस दिन को हम विजयादशमी के नाम से भी जानते हैं। दुर्गा पूजा उत्सव को अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है।
दुर्गापूजा भारत में हिन्दुओं का एक धार्मिक त्यौहार होने के साथ-साथ एक भारतीय संस्कृति और रीति को भी जोड़ता है। भगवान राम ने रावण को मारने से पहले देवी दुर्गा की पूजा की थी। तभी से दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई। इस त्यौहार को हर साल लोगो के द्वारा उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है। कई स्थानों पर सभी लोग मिलकर शहरों और गावों में दुर्गा पूजा उत्सव को अच्छे से सांस्कृतिक और परंपरागत तरीके से मानते हैं। दुर्गा पूजा हर जगह अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता की दुर्गा पूजा सबसे ज्यादा विख्यात है। लोग अपने पारम्परिक कपडे पहन कर माँ दुर्गा की आरती करते हैं और ढोल नगाड़ों पर नाचते हैं।
माँ दुर्गा ने नौ दिन और रात की लड़ाई के बाद महिषासुर का वध किया था। दुर्गा पूजा के अंतिम दिन माँ दुर्गा की प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। लोग इस अवसर पर कन्याओं को भोजन करवाते हैं और इसके साथ ही मेलों का भी आयोजन किया जाता है। सारा वातावरण खुशियों के माहौल में डूब जाता है। दुर्गा पूजा उत्सव पर कई जगहों में नाटक और रामलीला का भी आयोजन किया जाता है। लोग माँ दुर्गा से आशीर्वाद लेते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
*मुमताज़ अहमद*
*नेशनल प्रोटोकॉल अधिकारी*
*राष्ट्रीय भ्रष्टाचार नियंत्रण एवं जन*
*कल्याण संगठन*
मो. अजरुद्दीन अंसारी
प्रदेश सचिव मीडिया सेल बिहार
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संपादक
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