कानपुर 14 अक्टूबर खानकाहे हुसैनी में आशिके रसूल आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ का 102वां उर्स मुबारक अकीदत सादगी के साथ मनाया गया।
ज़ोहर की नमाज़ के बाद खानकाहे हुसैनी हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह०अलै०) की दरगाह का गुस्ल संदल, इत्र केवड़ा से कर गुलपोशी की गयी। उर्स की शुरुआत तिलावते कुरानपाक से हाफिज़ कफील हुसैन खान ने की नात मनकबत में "हाजियों आओ शहंशाह का रौज़ा देखो, काबा तो देख लिया काबे का काबा देखों, गौर से सुन लो रज़ा काबे से आती है सदा मेरी आँखों से मेरे प्यारे का रौज़ा देखो।" खानकाहे हुसैनी के साहिबे सज्जादा इखलाक अहमद डेविड चिश्ती ने कहा आला हज़रत अहमद रज़ा खाँ ने इल्म का जाम इतनी शिद्दत के साथ पिया कि देश-विदेश का मुस्लिम जगत उनका कायल हो गया अरब के उलमा ने उन्हें मुजद्दिद की उपाधि से नवाज़ा दीनी और दुनियाबी इल्म की बदौलत ही वे दुनियां भर में आला हज़रत के नाम से जाने गए तेरह साल की उम्र में मुफ्ती बन गये उर्दू, अरबी, फारसी के अलावा हिंदी, गणित, विज्ञान समेत कई विषयों पर उनकों महारथ हासिल थी वह एक महान इस्लामिक विद्वान्, न्यायविद तथा महान समाज सुधारक थे, उन्होंने कानून, धर्म, दर्शन तथा विज्ञान विषयों पर अनेक पुस्तकों की रचना की। उर्दू में कुरान शरीफ का अनुवाद कर कंजुल ईमान लिखी जो दुनियाभर में मशहूर है दीन और इल्म की खिदमत में पूरी ज़िदगी गुज़ारी आशिके रसूल आला हज़रत सुन्नियत के बड़े आलमबरदार बने उन पर उनके पीर को भी नाज़ था उनके पीर सैय्यद आले रसूल फरमाते है कि अगर कयामत के रोज़ खुदा उनसे पूछेगा कि दुनिया से मेरे लिए क्या लेकर आया है तो अपनी इबादत रियाज़त पेश नही करुंगा बल्कि खुदा की बारगाह में अहमद रज़ा को पेश कर दूंगा। अल्लाह और रसूले खुदा से मोहब्बत करना व सुन्नतों पर अमल कैसे किया जाता है वो उन्होंने पूरी दुनियां को बताया। खिताब के बाद 2 बजकर 38 मिनट पर कुल शरीफ की आखिरी रस्म अदा की गयी। दुआ में अल्लाह की बारगाह में रसूले खुदा, मौला अली गरीब नवाज़ के सदके व उर्स की बरकत से हमारे मुल्क को वहशीपन हरकतों से बदनाम करने वालों पर कुदरती कहर नाज़िल कर, हमारे मुल्क सूबे व शहर में अमनो-अमान कायम रहने, नमाज़ की पाबंदी करने, गरीबों, बेसहारो की मदद करने, दीनी दुनियाबी तालिम दिलाने, दहशतगर्दी का खात्मा करने की दुआ हुई। दुआ बाद उर्स का लंगर बांटा गया।
उर्स में इखलाक अहमद डेविड चिश्ती, हाफिज़ मुशीर अहमद, हाफिज़ मोहम्मद शोएब, हाजी गौस रब्बानी, फाज़िल चिश्ती, मोहम्मद शाहिद, परवेज़ वारसी, अफज़ाल अहमद, मोहम्मद रज़ा अज़हरी, अदनान अज़हरी, मोहम्मद हफीज़, अबरार अहमद वारसी, मोहम्मद जावेद, एजाज़ रशीद आदि लोग मौजूद थे।