*यथार्थ एवं तत्त्वज्ञान के बिना कल्याण सम्भव नही है: रवि पांडेय*
सासाराम(रोहतास) संसार में चार प्रकार का ज्ञान होता है मिथ्याज्ञान, संशयज्ञान, शाब्दिक ज्ञान, और तत्त्वज्ञान, इस विषय पर चर्चा करते हुए डी ए वी के एन सी सी पदाधिकारी, शिक्षाविद सह समाजसेवी रवि भूषण पांडेय कहते हैं कि बिना ज्ञान संवर्धन,संयोजन एवं विषय वस्तु की जानकारी के बिना जीवन हमेशा खतरों से घिरा होता है। वर्तमान के परिवेश में कुछ तथाकथित स्वंयभू बुद्धिजीवी समाज मे कुतर्क कर आम जनमानस के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण को खराब कर रहे हैं। रवि भूषण पांडेय चर्चा करते हुए बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद परिव्राजक ने चार प्रकार के ज्ञान की चर्चा की है ।
*मिथ्याज्ञान* तो वैसे ही हानिकारक है, रस्सी को साँप समझ लेना और उससे डरना। अपने डर कर सारे काम छोड़कर भाग गए ,इससे तो हानि हुई ही, आपके काम भी रुक गए। जबकि साँप तो था ही नहीं।
*संशय ज्ञान* में भी कोई लाभ नहीं हुआ, समझ ही नहीं आ रहा कि यह रस्सी है या सांप? तब भी काम रुक गए,और डर से मन भयाक्रांत हैं।
*शाब्दिक ज्ञान* में आपने यह तो समझ लिया कि सामने जहरीला सांप है, परंतु उससे अपनी रक्षा नहीं की, उससे दूर नहीं गए, और उसके साथ खेलते रहे। मृत्यु का खतरा मोल लिया। इस से भी लाभ नहीं हुआ।
वास्तविक लाभ तो तब हुआ जब आपने साँप के विषय में *तत्त्वज्ञान* प्राप्त किया, कि यह जहरीला सांप है, यदि काट लेगा तो मृत्यु हो जाएगी। इसलिए इस से दूर रहना चाहिए। तब उससे दूर रहकर आपने अपनी रक्षा की, तभी पूरा लाभ हुआ।
इसी प्रकार से सभी क्षेत्रों में समझना चाहिए।
अब प्रश्न यह है कि इस तत्वज्ञान तक कैसे पहुंचें? उसका उपाय है, मिथ्या ज्ञान और संशय से बाहर निकलें। पहले शाब्दिक ज्ञान प्राप्त करें। शाब्दिक ज्ञान, तत्त्वज्ञान तक पहुंचने की सीढ़ी है। यदि किसी को शाब्दिक ज्ञान नहीं है, तो वह तत्त्वज्ञान तक नहीं पहुंच पाएगा। इसलिए पहले आपको शाब्दिक ज्ञान प्राप्त करना पड़ेगा। उसके बाद उस पर बहुत लंबा चिंतन मनन विचार करना पड़ेगा। बार-बार शाब्दिक ज्ञान की आवृत्ति करनी पड़ेगी। दोहराना पड़ेगा, उसका जीवन में आचरण प्रयोग परीक्षण कर करके देखना पड़ेगा। तब जाकर वह शाब्दिक ज्ञान, तत्त्वज्ञान में बदलेगा। केवल शाब्दिक ज्ञान प्राप्त करके मिथ्या संतोष नहीं कर लेना चाहिए, कि आपने सब कुछ सीख लिया है। अब और आगे कुछ जानने की आवश्यकता नहीं है।
डाकू रत्नाकर यानी वाल्मीकि जी, महर्षि दयानंद सरस्वती जी एवं महात्मा बुद्ध जैसे कई अन्य महान विभूतियों ने तत्त्वज्ञान प्राप्त किया और उन सभी महापुरुषों का कल्याण हुआ।
इसी प्रकार से संसार दुखमय है, ईश्वर आनंदस्वरूप है और सभी दुखों का निवारक है। जब तक यह शाब्दिक ज्ञान रहेगा, तब तक इससे कल्याण नहीं होगा। जब यह तत्त्वज्ञान बन जाएगा, तब आप केवल ईश्वर को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाएंगे, और संसार की दुखमय चीजों से बचने का प्रयास करेंगे,ताकि आप सब दुखों से छूट कर पूर्ण आनंदस्वरूप ईश्वर को प्राप्त करेंगे और आनंदित होगें। इसलिए आपको वास्तविक ज्ञान ,यथार्थज्ञान एवं तत्त्वज्ञान को प्राप्त करना चाहिए। उसी से आप सबका कल्याण होगा।