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जलवायु आपदाओं में दिव्यांगों को प्राथमिकता देने पर सहमति BSDMA सचिव ने इसे नीतिगत के साथ-साथ नैतिक जिम्मेदारी करार दिया!*

 


 _रमेश ठाकुर_ 

 _रामनगर-नरकटियागंज,_ _प०चंपारण(बिहार)_ 

 _17-12-2025_ 


पटना। आपदा प्रबंधन को भेदभाव-रहित और पूर्णतः समावेशी बनाने के उद्देश्य से बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और यूनिसेफ के सहयोग से राजधानी पटना में दिव्यांग-समावेशी आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DiDRR) विषय पर दो दिवसीय क्षमता-वर्धन कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का मूल संदेश रहा— “आपदा प्रबंधन तब तक प्रभावी नहीं हो सकता, जब तक उसमें समाज के हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित न हो।”

कार्यशाला का आयोजन भारत में संयुक्त राष्ट्र और यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग से किया गया, जिसमें यूएनडीपी तथा हैंडीकैप इंटरनेशनल (ह्यूमैनिटी एंड इन्क्लूजन) ने विशेषज्ञ सहयोग प्रदान किया। इस कार्यक्रम में सहायक आपदा प्रबंधन अधिकारी, आपदा जोखिम न्यूनीकरण विशेषज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी तथा दिव्यांग व्यक्तियों के संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

उद्घाटन सत्र में यूनिसेफ के आपदा जोखिम न्यूनीकरण विशेषज्ञ श्री राजीव कुमार ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यशाला के उद्देश्यों और अपेक्षित परिणामों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि दिव्यांग-समावेशी दृष्टिकोण अपनाए बिना आपदा तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास की योजनाएँ अधूरी रह जाती हैं।

आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव डॉ. चंद्रशेखर सिंह के निर्देशानुसार अपने मुख्य संबोधन में विभाग के संयुक्त सचिव श्री नदीमुल ग़फ्फ़ार सिद्दीक़ी ने कहा कि आपदाएँ किसी के साथ भेदभाव नहीं करतीं, इसलिए हमारी नीतियाँ और प्रतिक्रिया प्रणालियाँ भी पूरी तरह भेदभाव-रहित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों की सुरक्षा, सम्मान और भागीदारी सुनिश्चित करना सुशासन का अनिवार्य अंग है। उन्होंने यह भी बताया कि बिहार राज्य सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन के अनुरूप अपनी आपदा योजनाओं को सुदृढ़ कर रहा है, जिसमें समावेशन को केंद्रीय स्थान दिया जा रहा है।



बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (BSDMA) के सचिव श्री मोहम्मद वारिस ख़ान, भा.प्र.से., ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती और अप्रत्याशित आपदाओं के वर्तमान परिदृश्य में दिव्यांग व्यक्तियों को प्राथमिकता देना केवल नीतिगत निर्णय नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, यूनिसेफ और यूएनडीपी के सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाएँ राज्य की नीतियों में दीर्घकालिक सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होंगी।

कार्यशाला के दौरान दिव्यांग व्यक्तियों के जीवनानुभवों पर आधारित एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें आपदा के समय निकासी, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों तक पहुँच, सुरक्षित आश्रय स्थलों की उपलब्धता और राहत वितरण जैसे व्यावहारिक मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। इस सत्र का संचालन ह्यूमैनिटी एंड इन्क्लूजन के आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं जलवायु अनुकूलन विशेषज्ञ श्री कुमार शिवेन्द्र ने किया।

दिव्यांग समुदाय की ओर से श्रीमती राधा ने बाढ़ के दौरान बचाव और राहत से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि आपदाओं के समय दिव्यांग महिलाओं की संवेदनशीलताएँ कई गुना बढ़ जाती हैं। उन्होंने समावेशी, सुलभ और लैंगिक-संवेदनशील आपदा प्रबंधन नीतियों की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया।

दो दिवसीय कार्यशाला में दिव्यांगता की मूल अवधारणाओं, समावेशन के विभिन्न मॉडलों, जोखिमग्रस्त व्यक्तियों की पहचान, अधिकार-आधारित दृष्टिकोण, समावेशी संचार, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ, सुरक्षित निकासी और आश्रय प्रबंधन, बचाव तकनीकें तथा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की सर्वोत्तम प्रथाओं पर विस्तृत विमर्श किया गया। इसके साथ ही एक स्थानीयकृत टेबल-टॉप अभ्यास के माध्यम से प्रतिभागियों को समावेशी तैयारी और प्रतिक्रिया उपायों को व्यवहारिक रूप में समझने और अपनाने का अवसर मिला।

कार्यशाला का समापन दिव्यांग समावेशन को राज्य की आपदा प्रबंधन नीतियों, योजनाओं और जमीनी क्रियान्वयन में और अधिक मजबूत करने हेतु सहमत कार्य-योजना के साथ किया जाएगा, ताकि भविष्य में कोई भी आपदा के समय पीछे न छूटे।

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