_रमेश ठाकुर - नरकटियागंज रामनगर, पश्चिमी चंपारण बिहार_
_दिनांक:- 24-01-2025_
चारा घोटाला (1978-1995) भारतीय राजनीति के इतिहास का एक काला अध्याय है। 17 वर्षों तक चले इस घोटाले में 950 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताएं उजागर हुईं। औसतन, इस अवधि में हर साल लगभग 55 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया। यह मामला देशभर में चर्चित रहा और बड़े राजनेताओं के शामिल होने के कारण राजनीतिक हलकों में भूचाल ला दिया।
लेकिन यह सवाल अब भी कायम है कि क्या वर्तमान समय में भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सका है? आंकड़ों की मानें तो वर्तमान में सुशासन के दावों के बावजूद स्थिति कहीं अधिक गंभीर है। अनुमान है कि आज के दौर में कुल बजट का कम से कम 15% राशि कमीशन के रूप में ली जा रही है। यह घोटाले की राशि हर साल लगभग 36,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है।
यदि तुलना की जाए तो 17 वर्षों में हुए चारा घोटाले की राशि वर्तमान शासन में एक साल में ही पार कर जाती है। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि देश की आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर गहरा सवाल भी खड़ा करती है।
जनता को चाहिए कि इस मुद्दे पर सजगता दिखाए और पारदर्शिता की मांग करे। भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत कानून और उसकी सख्ती से अनुपालना ही इस समस्या का समाधान हो सकता है। अन्यथा, भ्रष्टाचार का यह चक्र देश की प्रगति में बाधा डालता रहेगा।