__ठाकुर रमेश शर्मा-रामनगर,प०चम्पारण(बिहार)_
तथा विजय शर्मा-बगहा, प०चम्पारण(बिहार)
(सुश्री अनुपमा सिंह होगी बगहा की नई अनुमंडल पदाधिकारी।)
(संघर्ष की बदौलत तय किया अनुपमा ने आई ए एस का सफर।)
(चम्पारण की धरती बाल्मीकि की तपोभूमि पर बगहा में पहली बार मिली महिला अनुमंडलाधिकारी।)
(ढाई साल के बच्चे को छोड़ पढ़ने गईं थी दिल्ली मेहनत के बदौलत पहली बार मे ही बन गई आई ए एस अधिकारी।)
कहा जाता हैं लहरों से डरकर नौका पार नही होती कोशिस करने वाले कि कभी हार नही होती । बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिला के बगहा अनुमंडल को चम्पारण की धरती बाल्मीकि की तपोभूमि पर पहली बार महिला अनुमंडलाधिकारी की पहली ही पोस्टिंग हुई है।
शादी के पहले पढ़ाई के समय लड़कियां बहुत सारे ख़्वाब देखती हैं। वह अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हैं जिससे उनकी एक समाज मे अलग पहचान बन सके तथा वह अपने पैरों पर खड़ी होकर परिवार के साथ राज्य की भी देखरेख अच्छे से कर सके। परंतु अक्सर समाज मे देखा जाता है की एक लड़की शादी के बाद घर-परिवार और बच्चे को संभालते-संभालते अपनी पूरी जिंदगी गुजार देती है जिसके वजह वह अपने सपने को भुलाकर परिवार की देखरेख में लगी रहती है। लेकिन कुछ ऐसी भी महिलायें हैं जो अपनी जज्बे व हौसले को लेकर शादी के बाद भी काफी मेहनत व लगन के साथ सपने को निर्वाहम करने में लगी रहती हैं जो समाज में अन्य लड़कियों के लिये भी नये-नये मिसाल कायम कर रही हैं।
यह भी कहानी भी एक ऐसी लड़की पर चरितार्थ हो रही है जिसने अपने ढाई वर्ष के बच्चे और परिवार से अलग रहकर यूपीएससी की तैयारी करने में जुट गई और 90 वां रैंक लाकर पहले ही मर्तवा में सफलता की कुंजी को प्राप्त कर वह यह साबित करती है कि यदि मन में मंजिल को पाने की दृढ इच्छा-शक्ति हो तो दुनिया की कोई भी कठिनाई राह का रोड़ा नहीं बन सकती।
बता दे की अनुपमा सिंह की जमस्थली बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली हैं। जो अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना से ही प्राप्तकर अपने माता पिता के साथ बिहार का नाम रौशन कर रही हैं जानकारी अनुसार अनुपमा के पिता एक रिटायर्ड एमआर है तथा उनकी माता एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है। जिन्होंने बताया कि वह बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में बहुत होशियार थी। वह 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद एमबीबीएस डॉक्टर का प्रवेश परीक्षा दी और उसमे भी वह सफल पाई। तत्पश्चात अनुपमा ने सबसे कठिन मानी जाने वाली एमएस की प्रवेश परीक्षा भी दिया और उसमे भी पूर्ण सफलता को हासिल कर उन्होंने वर्ष 2014 मे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी बीएचयू से मास्टर ऑफ़ सर्जरी की उपाधि हासिल की। उसके बाद वह एक सरकारी हॉस्पिटल में रहकर एसआरसीप करने लगी।
अवस्था समय होने के दौरान उनकी शादी हिन्दू रीति रिवाज से शादी कर अपना घर बसा लिया । दाम्पत्य जीवन होने के कुछ समय बाद ही उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। अनुपमा ने जब देखा कि सरकारी हॉस्पिटल में ग्राउंड लेवल पर बहुत सारी खामियां है तथा उसका हल नहीं निकल रहा है। तब उनके मन में विचार आया कि स्वास्थ्य प्रणाली में बदलाव की बहुत जरुरत है। वह एक डॉक्टर के तौर पर मरीजों का इलाज तो कर ही रही थी परंतु सिस्टम में मौजुद बहुत सारी समस्याओं पर कार्य नहीं कर पा रही थी। उन्होंने अपने आप को महसूस किया कि जब तक ये सभी समस्याएं खत्म नहीं होगी तो सिर्फ मरीजों के इलाज से उनका भला नहीं हो सकता। इसी विचार के साथ उन्होंने सिविल सर्विस की ओर अपना रुख बदला। और वह आज आई ए एस बनकर बिकाश की दरिया बहाने भी जुटी पहली पोस्टिंग प्राप्त की है अब देखना यह होगा कि एक महिला अफसर को पूरे अनुमंडल की जिमेदारी सौपी गई है।
इसके वर्षों पहले बिहार के ही महिला I.A.S मृदुला सिन्हा का जन्म श्रीमती अनुपा देवी व बाबू छबीले सिंह के यहाँ 27 नवम्बर 1942 को हिन्दू पंचांग के अनुसार राम-विवाह के शुभ दिन बिहार राज्य में मुजफ्फरपुर जिले के छपरा गाँव में हुआ था। मनोविज्ञान में एम०ए० करने के बाद उन्होंने बी०एड० किया और मुजफ्फरपुर के एक कॉलेज में प्रवक्ता हो गयीं। कुछ समय तक मोतीहारी के एक विद्यालय में प्रिंसिपल भी रहीं किन्तु अचानक उनका मन वहाँ भी न लगा और नौकरी को सदा के लिये अलविदा कहके उन्होंने हिन्दी साहित्य की सेवा के लिये स्वयं को समर्पित कर दिया। उनके पति डॉ॰ रामकृपाल सिन्हा, जो विवाह के वक़्त किसी कॉलेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता हुआ करते थे, जब बिहार सरकार में मन्त्री हो गये तो मृदुला जी ने भी साहित्य के साथ-साथ राजनीति की सेवा शुरू कर दी। आज तक यह सिलसिला लगातार जारी है।
मिशाल के तौर परभारत की पहली पांच आईपीएस अफसरों में से एक, और बिहार की पहली महिला आईपीएस अधिकारी 1976 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा पास करके भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुईं । अपने कार्यकाल में उन्होंने बिहार और झारखंड में विभिन्न पदों पर काम किया, वह राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एनपीए), केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में भी रही हैं।
लेखिका ने एक बयान में कहा, ‘‘लोग मुझसे अकसर मेरी कहानी लिखने को कहते थे। मैं आशा करती हूं कि मेरी कहानी सभी लड़कियों और कामकाजी महिलाओं को अपनी दिल की बात पर भरोसा करना सिखाएगी और उन्हें तमाम परेशानियों के बावजूद जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी।’’
नयी दिल्ली में रह रहीं जरुहार सीआईएसएफ की विशेष महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुई हैं और फिलहाल टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) में सलाहकार के पद पर हैं।
भागलपुर घटना, 1984 के सिख विरोधी दंगों और बिहार में लालू प्रसाद के शासनकाल जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं की पृष्ठभूमि में लिखी गई, "मैडम सर" एक महिला की आंखों से आईपीएस के भीतर का चित्रण किया था। उसी कतार मे आज बिहार की I.A.S सुश्री अनुपमा सिंह वाल्मीकि के तपोभूमि पर पश्चिमी चम्पारण के बगहा में S.D.M के पद पर विराजमान हुई है जो महिला जाती के लिए प्रेरणादायक है। इनसे महिलाओं के साथ सम्पूर्ण बगहा वासियों को बहुत उम्मीद है।देखना है कि कहा तक खरा उतर रही हैं।