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*क्या न्याय की डोर सुप्रीम कोर्ट के हाथ ?*

 


 _ठाकुर रमेश शर्मा-रामनगर,प०चम्पारण(बिहार)_ 


D.G.P का मतलब होता है "डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस" यानी "पुलिस महानिदेशक"। बिहार के किसी क्षेत्र में होने वाले किसी स्तर के होने वाले अपराध में जांच के दौरान यानी अनुसंधान के दौरान सूक्ष्म बिन्दूओ पे या बहुत बड़ी बिन्दूओ पे अनुसंधान का आदेश देने का हक सबसे बड़ा अधिकार मात्र D.G.P का ही होता है। अगर D.G.P के ही अनुसंधान में लापरवाही हो जाये तो उस कमी को कौन दूर करेगा ?

क्रिस्चन धर्म के लोगो के लिए धार्मिक पुस्तक बाईबल होता है। उस बाईबल में 66 किताबें(अध्याय) होती है। पुराने अहदनामे में 39 अध्याय होता था और नए में 27 किताबे यानी 27 अध्याय होती है। उसी नए अध्याय में मति,मरकुस, लुका, यहुन्ना,इत्यादि अध्याय होती है। उसी मति अध्याय में लिखा है "तुम समाज के नमक हो" यानी ऊँचे पद वाले व्यक्ति को नमक की संज्ञा दी गई है।

अगर नमक का स्वाद ज्यादा रहेगा तो वह किस चीज़ से नमकीन किया जाएगा ?

उसी का उदाहरण है- D.G.P बिहार S.K.सिंघल।

उनपर अगर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो उनको बिहार पुलिस महकमे में कौन आरोप मुक्त करेगा ? 

अब तो इस प्रकरण में भारत का सर्वोच्च अदालत ही कुछ कर पायेगा,तभी दुध का दूध और पानी का पानी होगा।

          साइबर क्राइम में फंसे बिहार पुलिस के DGP की मुश्किल बढ़ सकती है। साइबर अपराधी के फोन कॉल पर भ्रष्ट IPS की मदद करना भारी पड़ सकता है। अब सरकार को यह तय करना होगा कि DGP की कार्रवाई कितनी सही है। साइबर क्राइम का यह हाई प्रोफाइल मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।


पटना हाईकोर्ट के एक एडवोकेट ने इसे चीफ जस्टिस एवं न्यायपालिका की छवि धूमिल करने वाला बताकर सुप्रीम कोर्ट से CBI जांच की मांग की है। घटना के मुख्य आरोपित को रिमांड पर वह विभाग ले रहा है जो डीजीपी के अधीन है, ऐसे में निष्पक्ष जांच पर कई सवाल उठ रहे हैं।


पटना हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट मनीभूषण प्रताप सेंगर ने बिहार के डीजीपी एस के सिंघल की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़ा किया है। एडवोकेट ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को लेटर पिटीशन भेजकर गंभीर मामले की न्यायिक या सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी कराने की मांग की है।


18 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस को भेजे गए लेटर पिटीशन में एडवोकेट ने कहा है कि बिहार पुलिस के मुखिया का किसी साइबर क्रिमिनल के जाल में फंस जाना बड़ा सवाल है। पुलिस को कोई भी अधिकारी कैसे किसी फ्राॅड के झांसे में आ सकता है। इसमें कहीं न कहीं पुलिस का बड़ा खेल है, जिससे पटना के हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और न्यायपालिका की छवि धूमिल की जा रही है।

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