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ग्लोबल हैण्ड वाशिंग डे पर ‘सहयोगी’ ने बढ़ाया सफ़ाई का हाथ, लोगों को किया जागरूक

 


दानापुर एवं बिहटा के लगभग 25 गाँवों में चली मुहिम

कोरोना काल में हैण्ड वाशिंग साबित हुआ रामबाण

हाथों की धुलाई के प्रदर्शन एवं हाथों से बने पोस्टर ने खींचा लोगों का ध्यान 


पटना/ 15, अक्टूबर: 


शहरों में तो कोरोना काल की शुरुआत से ही लोगों ने हाथों की सफाई को अपनी प्राथमिकता में शामिल कर लिया था. लेकिन अभी भी गाँवों की कच्ची सड़कें एवं सड़कों पर उड़ती धूल लोगों को हाथों की सफ़ाई से दूर करती रही है. ऐसे में गुरूवार को दानापुर एवं बिहटा के लगभग 25 गाँवों के बच्चे, महिलाएं एवं बुजुर्ग हाथों की सफाई के गुर सीखते दिखें. साथ ही बच्चें एवं महिलाएं हाथों में हैण्ड वाशिंग का संदेश देते हाथों से बने पोस्टर भी दिखे, जो यह कहने का प्रयास कर रहे थे कि हाथों की सफाई की बयार शहरों से गाँवों की तरफ़ होने लगी है. ऐसा दृश्य ‘सहयोगी’ संस्था के सहयोग से संभव हो सका. प्रत्येक साल 15 अक्टूबर को ग्लोबल हैण्ड वाशिंग डे विश्व स्तर पर मनाया जाता है. इस बार के ग्लोबल हैण्ड वाशिंग डे की उपयोगिता एवं महत्ता दोनों अधिक है, क्योंकि पूरा विश्व अभी कोरोना संक्रमण से संघर्ष कर रहा है. ऐसे में ग्लोबल हैण्ड वाशिंग डे कोरोना को मात देने में रामबाण साबित हो सकता है.  



हाथों की धुलाई कर लोगों को दिया संदेश:


हाथों की स्वच्छता कई रोगों से व्यक्ति का बचाव करता है. कोरोना संक्रमण काल में इसकी उपयोगिता अधिक बढ़ी भी है. लेकिन हाथों को साफ़ करने का सही तरीके की जानकारी अभी भी लोगों को नहीं है. विशेषकर ग्रामीण परिवेश में इस जानकारी की अधिक कमी है. इसे ध्यान में रखते हुए सहयोगी संस्था के कर्मियों ने दानापुर एवं बिहटा के लगभग 20 गाँवों में ग्लोबल हैण्ड वाशिंग के दिन हैण्ड वाशिंग की मुहिम चलायी, जिसमें हैण्ड वाशिंग का प्रदर्शन किया गया एवं लोगों को हाथों की स्वच्छता पर जानकारी दी गयी.

 

हाथों से बने पोस्टर ने खींचा लोगों का ध्यान:

हाथों की सफाई कितना महत्वपूर्ण हो सकता है. इस बात को कोरोना संक्रमण ने साबित किया है. ऐसे में हाथों की सफाई के विषय में समुदाय के व्यवहार में परिवर्तन सबसे जरुरी हो गया है. ग्लोबल हैण्ड वाशिंग डे के मौके पर सहयोगी संस्था के सहयोग से महिलाएं एवं बच्चे इसी व्यवहार परिवर्तन को करते भी दिखे. उनके हाथों में हाथों से बने पोस्टर पर ‘ स्वच्छता को अपनाओ, इसे अपना धर्म बनाओ’, ‘ हम सबका एक ही नारा, साफ़-सुथरा हो शहर अपना’ जैसे कई स्लोगन दिखे, जो इस बात की पुष्टि करते दिखे कि आने वाले समय में शहरों के साथ गाँवों में भी स्वच्छता की चर्चा घर-घर होने वाली है.



स्वच्छता महिला विकास में भी सहायक: 

सहयोगी संस्था की कार्यकारी निदेशक रजनी सहाय ने बताया कि कोरोना संक्रमण की शुरुआत से ही हाथों की सफाई की उपयोगिता पर चर्चा बढ़ने लगी है. लेकिन हाथों की सफाई या स्वच्छता सिर्फ़ स्वास्थ पर सकारात्मक असर नहीं डालता, बल्कि यह सामाजिक विकास की भी बुनियाद खड़ी करता है. उन्होंने बताया कि हाथों की बेहतर सफाई करने से लोगों के व्यवहार में एक सकारात्मक परिवर्तन आता है. यह परिवर्तन भले ही छोटा दीखता हो, लेकिन ग्रामीण परिवेश के हिसाब से इसे एक अहम बदलाव के साथ जोड़कर देखा जा सकता है. यदि ग्रामीण परिवेश के लोग हाथों की सफाई के प्रति इतने सतर्क हो जायें तो  घरेलू एवं लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ़ भी सतर्क एवं मुखर आसानी से हो सकेंगे. जिस तरह संक्रमण को दूर करने के लिए हैण्ड वाशिंग जरुरी है, ठीक उसी तरह महिलाओं के विकास के लिए घरेलू एवं लिंग आधारित हिंसा की सफाई भी जरुरी है.

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