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*बलिदान की अमर गाथा: गुरु तेग बहादुर साहब जी की जयंती पर राष्ट्र ने किया वीरता को नमन*

 


`धर्म एवं मानवता के रक्षक श्री गुरु तेग बहादुर साहब जी को राष्ट्र की श्रद्धांजलि`


_रमेश ठाकुर - पश्चिम चंपारण,बिहार_

_दिनांक:- 18-04-2025_


आज 18 अप्रैल 2025 को हिंद की चादर, महान संत, क्रांतिकारी विचारक एवं सिखों के नौंवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहब जी की जयंती पूरे श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जा रही है। यह दिन केवल सिख समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे भारतवर्ष के लिए प्रेरणा का प्रतीक है।


गुरु तेग बहादुर साहब जी का जन्म वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनका बाल्यकाल का नाम त्यागमल था और वे गुरु हरगोबिंद साहब जी के सुपुत्र थे। बचपन से ही वे गहन चिंतनशील, शांत, बहादुर और संत स्वभाव के थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक अपने पिता गुरु हरगोबिंद साहब की छत्रछाया में हुई, जहाँ उन्होंने धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रविद्या, घुड़सवारी एवं युद्धकला में भी निपुणता प्राप्त की।


महज 14 वर्ष की आयु में उन्होंने मुगलों के खिलाफ युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया, जिससे प्रभावित होकर उनके पिता ने उन्हें तेग बहादुर अर्थात् "तलवार के धनी" की उपाधि दी। बाद में, गुरु श्री हरकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु के पश्चात उन्हें सिखों का नवम गुरु घोषित किया गया।


गुरु तेग बहादुर साहब जी का जीवन समर्पण, त्याग, बलिदान और मानवता की सेवा का प्रतीक है। उन्होंने जहां-जहां कदम रखा, वहां लोगों ने नशा, तंबाकू जैसी बुराइयों को त्याग दिया। उन्होंने देशवासियों को मुगलों की अत्याचारपूर्ण नीतियों के विरुद्ध खड़ा किया और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दे दी।


उनकी रचित बाणी के 116 शबद (श्लोकों सहित) 15 रागों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं, जो आज भी मानवता के लिए अमूल्य धरोहर हैं। दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित उनका शहीदी स्थल गुरुद्वारा शीशगंज साहिब आज भी उनके अद्वितीय बलिदान की गवाही देता है।


रवींद्र सिंह 'मंजू सर', जो कि राष्ट्रीय अधिमान्य पत्रकार संगठन के जिलाध्यक्ष मैहर एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन (ए) मध्यप्रदेश के उपाध्यक्ष हैं, अपनी कलम से लिखते हैं —

"गुरु तेग बहादुर साहब जी जैसे युग पुरुष विरले ही धरती पर जन्म लेते हैं। उनका जीवन शास्त्र और शस्त्र, वैराग्य और संघर्ष, नीति और परमार्थ का अनुपम संगम था। उन्होंने अपने समय की नृशंसता के विरुद्ध निडर होकर आवाज़ उठाई और मानवता की रक्षा हेतु सर्वोच्च बलिदान देकर 'हिंद की चादर' की उपाधि को सार्थक किया।"


आज उनकी जयंती पर पूरा देश उन्हें कृतज्ञता एवं श्रद्धा के साथ नमन करता है। उनका जीवन हमें सत्य, साहस, करुणा और त्याग का मार्ग अपनाने की प्रेरणा देता है।

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