_रमेश ठाकुर - पश्चिम चंपारण,बिहार_
_दिनांक:- 26-10-2025_
मैहर, मध्यप्रदेश।
रवींद्र सिंह ‘मंजू सर’ (राष्ट्रीय अधिमान्य पत्रकार संगठन जिलाध्यक्ष, राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन उपाध्यक्ष मध्यप्रदेश) ने अपने गहन विचारों के माध्यम से समाज को एक प्रेरणादायक संदेश दिया है — “मनुष्य अपने जीवन में चाहे तो रक्षक भी बन सकता है और राक्षस भी, निर्णय उसी के हाथ में होता है।”
मंजू सर की कलम कहती है कि जब व्यक्ति अपने चिंतन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाता है, तो उसके भीतर रक्षक का भाव स्वयं जागृत हो उठता है। जो व्यक्ति स्वयं कष्ट सहन कर लेता है लेकिन दूसरों को पीड़ा नहीं देता, वही सच्चे अर्थों में मानवता का रक्षक कहलाता है। समाज और राष्ट्र के लिए ऐसे व्यक्ति हर समय तत्पर रहते हैं।
इसके विपरीत, जब कोई व्यक्ति दूसरों की संपत्ति हड़पने, किसी का अहित करने, बुरे विचार रखने या परोपकार को अनदेखा करने की प्रवृत्ति अपनाता है, तब उसके भीतर का राक्षस जाग उठता है। मंजू सर के अनुसार, “राक्षस रूपी जीवन क्षणिक होता है, जबकि रक्षक रूपी जीवन दीर्घकालीन और सम्मानपूर्ण होता है।”
उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह हमारे विवेक पर निर्भर करता है कि हम अपने जीवन में किस रूप को अपनाना चाहते हैं। यदि हम प्रतिज्ञा लें कि हमेशा रक्षक बनकर रहेंगे और किसी भी परिस्थिति में राक्षस नहीं बनेंगे, तो हमारा जीवन स्वयं ही उन्नत और सार्थक बन जाएगा।
अंत में उन्होंने कहा — “जीवंत चिंतन के साथ यह प्रतिज्ञा करें कि हम सदैव मानवता के रक्षक रहेंगे,यही सच्चे जीवन का मार्ग है।”

